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प्रिंस कुमार मिठू।उदाकिशुनगंज
ग्वालपाड़ा ।प्रखंड क्षेत्र से सटे महजआधा किलोमीटर पूरब नोहर स्थित मां काली की महिमा अपरम्पार है। मां से मांगी गई हर मुरादें पूरी होती है। इस मन्दिर से भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है।
मन्दिर की स्थापना लगभग तीन सो वर्ष पुर्व से ही वैदिक मंत्रोच्चार एवम अनुष्ठान के लिए मन्दिर विख्यात है। पहले तो मां की स्थापना फूस के घर में की गई थी। कालांतर में भव्य
मन्दिर में मां दक्षिणेश्वर काली बिराजमान हैं।
प्रतिमा का निर्माण पूजा अर्चना के लिए बिहार सहित बिहार के बाहर ख्याति प्राप्त युवा कलाकर दीपक कुमार के द्वारा मां काली के अलावे अन्य देवी देवताओं की भव्य प्रतिमा बनाई जाती है जिसे देखने एवम पूजा अर्चना करने दूर दराज से भक्त जनों की भीड़ लगी रहती है।
मां की महिमा अपरम्पार है। मां के दरबार से कोई भी भक्त खाली नहीं जाता। तथा मन्नते पुरी होने पर लोग मां को खुश करने के लिए चढ़ावा चढ़ाने आते हैं। कोई छोटा तो कोई बड़ा जेवरात, वस्त्र, घंटा, चढ़ाते हैं। छाग बलि देते हैं।
अमावस्या पूजा की महत्व प्रतिमाह अमावस्या की तिथि की रात में मां की मंदिर में आरती वंदना किया जाता है जिसमें अगल बगल के श्रद्धालु भक्त भी अपनी मन्नतें लेकर मां के दरबार में अर्जी लगाने आते हैं। मंदिर ग्रामीण महिला पुरुष भक्त से भर जाता है। सच्ची घटना यह है की वर्ष 2008में आई प्रलयंकारी बाढ़ से जब हाहाकार मचा हुआ था। हर जगह पानी ही पानी नज़र आ रहा था। पुरा गांव पानी में डूबा हुआ था। लोग मकान के छत का शरण लिए हुए थे। मंदिर के बरांडे पर पानी चढ़ चुका था केवल मंदिर का गर्भगृह बांकी रह गया था। मंदिर में भी बूंद बूंद पानी गिरने लगा था। सूर्यास्त का समय था दो तीन घंटे बांकि रह गया था अमावस्या आरती वंदना में। घर से मां के दरबार जाने में कमर से ऊपर पानी में चल कर पूरे गांव की महिला पुरुषविह्बल होकर मंदिर पहुंच कर मां से अर्जी लगाना शुरू कर दिया। भक्तगण मां दक्षिणेश्वर काली की महिमा देखकर अचंभित हो। पूजा खत्म होते होते गर्भ गृह में गिरने वाला पानी बंद हो गया। पानी जहां था वहीं रह। गांव में पानी बढ़ने की रफ्तार रही लेकिन मंदिर के बरामदे से पानी अंदर नहीं जा सका।
प्रखण्ड क्षेत्र में काली पूजा के अवसर पर नोहर का दक्षिणेश्वर काली मन्दिर आकर्षण का केंद्र बना रहता है। वैदिक रीति रिवाज से मन्दिर में निर्मित प्रतीमा में प्राण प्रतिष्ठा देकर श्रद्धाभाव से पूजा अर्चना की जाती है। पुर्व समय से ही दो दिनो तक छाग बलि की प्रथा चली आ रही है। कुछ मन्नते प्राप्त कर चुके भक्त भैसा बली भी देते हैं। विधि विधान से प्रतिमा का विसर्जन कर ढोल बाजे के साथ नाचते गाते पूरे गांव का परिक्रमा करते हुए ग्रामीण युवक विसर्जित प्रतिमा के ढढ्ढा को कंधे पर उठा कर लगभग एक किलोमीटर गांव स्थित बाबा लक्ष्मी नारायण पोखर में प्रतीमा को जल प्रवाह किया जाता है।
मेले का आयोजन इस अवसर पर तीन दिनों तक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है इलाके के सबसे अधिक भीड़ जुटने वाली मेला का संज्ञा इस मेले को मिला हुआ है। मेले में रौशनी पानी की समुचित व्यवस्था की जाती है। सुरक्षा व्यवस्था में जहां ग्वालपाड़ा थाना चौबीस घंटा तत्पर रहते हैं वहीं पुलिस बल को सहयोग करने के लिए ग्रामीण वोलेंटियर तैयार रहता है। मेले में मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का अयोजन किया जाता है। सम्पूर्ण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कमिटी गठित कर जिसमे अध्यक्ष के रुप में अमर कांत झा सचिव के रूप में प्राणमोहन झा राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित अवकाश प्राप्त शिक्षक, कोषाध्यक्ष पंकज ठाकुर , उप सचिव, ब्रह्मानंद झा नुनुजी, के अलावे समिती के सदस्य चुने गए हैं सबों के सहयोग से संपूर्ण अयोजन किया जाता है। ग्रामीण हरिवल्लब ठाकुर, डॉ महानंद झा, उग्रनारायण झा, संघ के अध्यक्ष राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित अवकाश प्राप्त शिक्षक प्रणमोहन झा, अशोक ठाकुर वीरेंद्र झा, संतोष झा , उदय शंकर झा, मनोज शंकर ठाकुर, नुनु जी, बिपिन झा शिक्षक, मनोज मिश्र, मृत्युंजय ठाकुर, पंकज ठाकुर, ललन झा गोपीकांत, विजय मिश्रा,सुमित फुदन, अजित , राहुल वत्स, बिक्की उज्ज्वल सूरज,आदेश, मोंटी, आदि का कहना है कि मां की महिमा निराली है तथा भक्तजनों पर मां की कृपा दृष्टि बनी रहती है तथा मां की कृपा से ही गांव खुशहाल है।