ब्यूरो रिपोर्ट।
*मधेपुरा पुराने जमाबंदी को नए जमाबंदी के रूप में तब्दील कर उसे ऑनलाइन चढ़ाना अंचल कार्यालय की जिम्मेदारी होती है । लेकिन रिश्वत की इस दुनिया में जमींदारों को ही भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अब तो ये नौबत आ गई है कि बिहार सरकार के लिए कामधेनु गाय साबित हो रहे भूमि रजिस्ट्री से होने वाली आमदनी पर भी ग्रहण लग गया है । जिसके कारण सरकार को रोजाना लाखों रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है । *जमाबंदी में क्या फंसा है पेंच*पुराने जमाने में जमीन की जमाबंदी ऑफलाइन की जाती थी जिसका भू लगान भी ऑफलाइन ही जमा करना पड़ता था । उसके बाद सरकार ने इसे आरटीपीएस के तहत शुरू किया और धीरे धीरे इसे ऑनलाइन में तब्दील कर दिया गया ताकि जमींदारों को मोटी रकम राजस्व कर्मचारी को देना पड़े । ऑफलाइन के जमाने में कई किसान या जमीनदार अपना भू लगान ऑफलाइन जमा करते रहे । जब ऑनलाइन के माध्यम से जमाबंदी को अपग्रेड किया गया तो कई जमींदार का ऑनलाइन जमाबंदी तो कायम हो गया लेकिन कई बाँकी रह गए । ऑनलाइन जमाबंदी कायम करने की जिम्मेदारी अंचल कार्यालय की थी इसके लिए ऑपरेटर भी बहाल किए गए । लेकिन आधे से अधिक भू स्वामी के जमीन को ऑनलाइन नहीं किया जा सका । जिसके कारण सबसे अधिक परेशानी ऐसे भू स्वामी को हो रही है जिसका या तो ऑनलाइन जमाबंदी कायम नहीं किया गया या फिर ऐसे भू स्वामी का जिसका ऑनलाइन चढ़ने के बाद भी कई खाता और खेसरा का मिलान ऑफलाइन जमाबंदी से नहीं रहने के कारण गलत हो गया । *सरकार ने कहा परिमार्जन करें* भू लगान की वसूली के लिए लिए सरकार ने ऐसे भू स्वामी को अवसर दिया जिन्होंने अपना जमाबंदी ऑनलाइन कायम नहीं किया था ।।सरकार ने ऑनलाइन जमाबंदी के लिए छूटे हुए किसान को कहा की आप परिमार्जन करे अपनी जमीन को ताकि आपंकी जमीन सही ढंग से ऑनलाइन किया जा सके । लेकिन इसमें भी कई भू स्वामी छूट गए और उनका जमीन ऑनलाइन नहीं हो सका । ऐसी स्थिति में वे न तो जमीन को खरीद सकते हैं और न ही बेच सकते हैं । *डीसीएलआर कार्यालय का लगा रहे चक्कर*सरकार लगातार जामबंदी प्रक्रिया में संशोधन करती रही है जिसका सबसे अधिक नुकसान आम आदमी को उठाना पड़ रहा है। वहीं सिंहेश्वर अंचल के अधीन कई राजस्व ग्राम के जमाबंदी को ऑफलाइन से ऑनलाइन नहीं किया गया है । कई मौजा के जमीन का सैकड़ों जमाबंदी ऑनलाइन नहीं चढ़ाया गया है। जिसके कारण जयादतार जमीन को रिजेक्ट किया जा रहा है । जमीन अस्वीकृत हो जाने के बाद आम आदमी ऐसी बीमारी में फंस जाता है जिसका इलाज डीसीएलआर कार्यालय से लेकर अंचल कार्यालय तक सिर्फ पैसे खर्च पर ही सीमित हो जाता है । बहरहाल गलती तो अंचल कार्यालय की है कि वे सभी दस्तावेज को अपग्रेड नहीं कर सका । साथ ही जमींदारों से भी नहीं कहा गया कि इस संदर्भ में अपनी बात को रखे । अंचल कार्यालय की लापरवाही आम लोगो के लिए समस्या बन गया है ।